सनातन धर्म के अनुसार भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र विघ्न विनायक गणेश जी को प्रथम पूज्य देवता के रूप में जाना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार गणेश जी को केतु का देवता कहा गया है। केतु एक छाया ग्रह है जो सदैव दूसरे छाया ग्रह राहु के विपरीत रहता है। भगवान गणेश का संसार के सभी संसाधनों पर विशेष प्रभाव है। इसीलिए उन्हें गणाध्यक्ष कहा जाता है। किसी भी काम को शुरू करते समय सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है। भगवान गणेश के कई नाम हैं लेकिन बारह नाम सबसे महत्वपूर्ण हैं। सुमुख, एकदंत, कपिल, गजकर्णक, लंबोदर, विकट, विघ्ननाश, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचंद्र, गजानन।
विभिन्न कामनाओं की पूर्ति के लिए गणपति के निम्न अनुष्ठान कराये जा सकते हैं।
विद्या, धन, पुत्र अथवा मोक्ष की कामना रखने वाले व्यक्ति को इस स्तोत्र का पाठ कराने से उसकी इच्छा की पूर्ति अवश्य होती है। इस स्तोत्र का न्यूनतम 1100 पाठ कराना चाहिए अथवा किसी योग्य ज्योतिषी के परामर्श से कराना चाहिए।
धन प्राप्ति, सुख प्राप्ति, विजय प्राप्ति, पाप से मुक्ति, सभी विघ्नों से मुक्ति हेतु श्री गणपति अथर्व शीर्ष का पाठ योग्य ब्राह्मणों द्वारा कराना चाहिए। इस स्तोत्र का न्यूनतम 1100 पाठ कराना चाहिए।
सभी विघ्नों के विनाश के लिए, रोग से निवृत्ति के लिए, धन धान्य आदि की प्राप्ति के लिए, केतु ग्रह की शांति के लिए इस षडाक्षर मंत्र का सपादलक्ष(1,25,000) जप योग्य ब्राह्मण द्वारा कराना चाहिए।