वैदिक ज्योतिष के अनुसार केतु ग्रह को छाया ग्रह के रूप में जाना जाता है। केतु ग्रह आध्यात्म, तंत्र, मोक्ष, मायके, त्याग आदि का कारक होता है। जिस व्यक्ति की कुंडली में केतु शुभ स्थिति में होता है वह साहसी होता है। ऐसे व्यक्ति के जीवन में भोग और त्याग दोनों की भावना बनी रहती है। ऐसे लोग सामाजिक और धार्मिक क्षेत्रों में अत्यधिक रुचि रखते हैं। ऐसे लोग एकांत में रहना पसंद करते हैं। जिन लोगों की जन्म कुंडली में केतु अशुभ स्थिति में होता है या कमजोर होता है, उनके हर काम में बाधाएं आती हैं। व्यक्ति शारीरिक रूप से कमजोर होता है। जातक के अपने मायके पक्ष से संबंध अच्छे नहीं रहते हैं। व्यक्ति के पैरों में दर्द बना रहता है। कान, रीढ़ और जोड़ों में दर्द बना रहता है।
मंत्र जाप की संख्या 17,000 होनी चाहिए। जप के बाद कुश की लकड़ी, घी और समिधा से दशांश हवन करना चाहिए।
ॐ कें केतवे नमः।
ॐ स्रां स्रीं स्रौं सः केतवे नमः।
ॐ केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्याऽअपेशसे। सुमुषद्भिरजायथा।
पलाशपुष्प संकाशं तारका ग्रह मस्तकं। रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहं।।
ॐ धूम्रायविùहे कपोतवाहनाय धीमहि तन्नः केतुः प्रचोदयात्।