इस यज्ञ में विद्वान ब्राह्मण द्वारा इच्छानुसार चुनी हुई पोटली में से दुर्गा सप्तशती के 700 श्लोकों का पाठ किया जाता है। जिसे नौ बार दोहराया जाता है. जिसे नव चंडी यज्ञ कहा जाता है। नवचंडी यज्ञ में दुर्गा सप्तशती के प्रत्येक श्लोक से हवन किया जाता है। नवचंडी यज्ञ केवल योग्य एवं कुशल ब्राह्मण द्वारा ही कराया जा सकता है।
शतचंडी यज्ञ नवचंडी यज्ञ की तरह ही किया जाता है। लेकिन इसमें चंडी पाठ 100 बार दोहराया जाता है। जिसके कारण इसे शतचंडी यज्ञ कहा जाता है। शतचंडी यज्ञ योग्य ब्राह्मणों से कराना चाहिए।
सहस्र चण्डी यज्ञ में नवचण्डी यज्ञ की तरह चण्डी पाठ की सहस्र 1000 बार आवृत्ति होती है। सहस्र चण्डी यज्ञ योग्य ब्राह्मणों द्वारा ही कराना चाहिये।
लक्षचण्डी यज्ञ चण्डी यज्ञ का सबसे बड़ा यज्ञ है। यह यज्ञ इस यज्ञ को कराने का सौभाग्य बहुत कम लोगों को ही प्राप्त होता है क्योकि इस यज्ञ में धन और श्रम की अत्यधिक आवश्यकता होती है। इसमें चण्डी पाठ की 100000 आवृत्ति होती है।